विस्थापन के विरोध में धरने में शामिल हो

विस्थापन के विरोध में धरने में शामिल हो

विस्थापन के विरोध में और अलोकतांत्रिक, अनैतिक, जन-विरोधी और उद्योग-हिताशी The LandAcquisitionAmendment) Act, 2007 और The Resettlement and Rehabilitation Bill, 2007 के विरोध में आयोजित धरने में शामिल हो

धरना स्थल: जंतर मंतर, नई दिल्ली

२८ - ३० अप्रैल २००८

जिस रफ़्तार से भारत 'विकास' और 'आर्थिक लाभ' की दौड़ में भागे जा रहा है उसी रफ़्तार से शहरों और गावं में हाशिये पर रह रहे लोगों को विस्थापन झेलना पड़ रहा है और जो भी थोड़ा बहुत समान या जानवर आदि उनके पास है वो भी सब छिन जाते हैं.

एक भी दिन ऐसा नही जाता जब मीडिया में किसी किसी जमीन पर कब्जे की ख़बर हो, या कही कही लोगों ने उद्योगों का विरोध किया हो, या फिर पोलिस प्रशासन ने शान्ति से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हिंसक अत्याचार किए हों. सरकार ने जैसे लोगों के प्रति, विशेषकर गरीब लोगों के प्रति सब जिम्मेदारी को तिलांजलि दे दी हो!

सरकार जैसे चंद गिनती के उद्योगपतियों और पूंजीपतियों की कठपुतली हो के रह गई हो जो प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा ज़माने में लगे हैं. दूसरी ओर अनेकों दलित, आदिवासी, खेती-बादी में लगे लोगों को, किसानों को, मछुआरों को, कलाकारों को, जंगल में रहने वालों को, विस्थापन का क्रूर सत्य झेलना पड़ता है और पुनर-स्थापित होने की कोई आशा तक नही मिलती है.

भारत विस्थापित हुए लोगों की आवाज़ से गूँज रहा है, भले ही वो नंदीग्राम हो, जगतसिंहपुर हो, या SEZ के नाम पर विस्थापन हो, या बड़े डाम हों. शहरों में रह रहे गरीब लोगों का 'गैर-कानूनी करण' भी इस समस्या को और अधित जटिल बना देता है.

लोगों के रोज़गार और संसाधन जिनपर उनका रोज़गार निर्भर है, छिनता चला जा रहा है जिसके विरोध में संघर्ष पनप रहा है. लोग प्राकृतिक संसाधनों के निजीकरण के विरोध में आवाज़ उठा रहे हैं. 'विकास' के नाम पर लोकतंत्र और सामाजिक न्याय को ताक पर रखा जा रहा है.

अब सरकार दो ऐसे अधिनियम ले के आई है जिससे जमीन और प्राकृतिक संसाधन की लूट औरउद्योगीकरण कानूनी' और आसान हो जाएगा - ये दो अधिनियम हैं: The Land Acquisition (Amendment) Bill, 2007 (जमीनकब्जा अधिनियम २००७) और the Resettlement and Rehabilitation Bill, 2007 (पुनर्स्थापन अधिनियम २००७). '

ये दोनों अधिनियम इसलिए बनाये गए थे कि 'विकास' के नाम पर जमीन पर कब्जा संतुलित हो सके क्योकि जमीन सिर्फ़ उद्योग को ही नही चाहिए, अन्य उपयोगों के लिए भी जमीन की आवश्यकता होती है. और इसलिए भी ये अधिनियम बनाये गए थे कि विस्थापित हुए लोगों को उचित, नैतिक और मानविये तरीके से पुनर्स्थापित किया जा सके.

परन्तु जब ये अधिनियम बन के जनता के सामने आए हैं तो लोगों के हित में है ही नही. ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि ये दोनों अधिनियम उद्योगपतियों के हित को संग्रक्षित करने के लिए बनाये गए हो, और कि लोगों के हित को!

the Land Acquisition बिल या जमीन कब्जा अधिनियम निजी निवेशकों को और निजी कंपनियों को जबरन जमीन पर कब्जा करने की अनुमति देता है. यहा तक कि निजी उपयोग के लिए भी इस अधिनियम के तहत जमीन पर जबरदस्ती कब्जा हो सकता है.

इसी तरह पुनर्स्थापन अधिनियम विस्थापित हुए लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं को भी पूरा नही करता, जैसे कि जमीन-के-बदले-जमीन या विस्थापित हुए लोगों के लिए वैकल्पिक रोज़गार आदि की व्यवस्था.

उसी तरह शहरों में विस्थापित हुए लोगों के मुद्दे को ये दोनों अधिनियम नज़रंदाज़ कर देते हैं.

आज देश भर में जन-आन्दोलनों की मांग एक है - 'विकास' योजनाओं में गरीब लोगों को केन्द्र में रखा जाए ओर ये योजना लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और समानता पर आधारित हो.

एक और महत्त्वपूर्ण बात ये है कि विकास योजना, जमीन पर कब्जा, पुनर्स्थापन आदि आपस में जुड़े हुए मुद्दे हैं और इनको अलग अलग कर के नही विचार किया जा सकता. इसीलिए देश-भर में चल रहे जन-आन्दोलन विकास योजना पर एक व्यापक अधिनियम की मांग करते रहे हैं.

कोई जबरदस्ती विस्थापन नही होना चाहिए, और पुनर्स्थापन की व्यवस्था अच्छी होने चाहिए. असल में एक ड्राफ्ट रपट जो ७३ और ७४ संविधानिक परिवर्तन पर आधारित हैं, तैयार है जो ग्राम सभा को, मुनिस्पैल्टी को जिले की विकास योजना बनाने का अधिकार देती है. एन सब मांगों को नज़रंदाज़ कर के सरकार एन दोनों अधिनियम को बढावा देने में लगी है, जो विस्थापन को कम-से-कम करने की बजाये विस्थापन का समर्थन करते हैं और विस्थापित हुए लोगों के हित की संग्रक्षा नही करते.

इन्ही सब मुद्दों को उठाने के लिए आप सब से निवेदन है कि २८-३० अप्रैल २००८ को नई दिल्ली में जंतर मंतर पर आयोजित धरने में शामिल हों.

अशोक चौधरी, रोमा (नेशनल फॉरम ऑफ़ फॉरेस्ट पीपुल एंड फॉरेस्ट वोर्केर्स)

गौतम बंदोपाध्याय (नदी घटी मोर्चा)

शक्तिमान घोष (नेशनल हव्केर्स फेडेरेशन)

उल्का महाजन (सेज विरोधी संघर्ष समिति)

मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आन्दोलन & नेशनल अलायंस ऑफ़ पीपुल'स मोवेमेंट्स)

गब्रिएले डी (पेंनुरुमै इय्याकम & नेशनल अलायंस ऑफ़ पीपुल'स मोवेमेंट्स)

मुक्त श्रीवास्तव , सिम्प्रीत संघ (घर बचाओ घर बनाओ आन्दोलन)

राजेंद्र रवि (नेशनल अलायंस ऑफ़ पीपुल'स मोवेमेंट्स)

सर. सलिया (नेशनल अलायंस ऑफ़ पीपुल'स मोवेमेंट्स)

संध्या देवी (कालाहांडी महिला समिति, उड़ीसा)

भूपेंद्र रावत (जन संघर्ष वाहिनी)

सुनीति स र (विश्थापन विरोधी संघर्ष समिति)

गीता डी (निर्माण मजदूर पंचायत संगम)

सुभाष भटनागर (न्च्चुस्व)

संदीप पाण्डेय (आशा परिवार और जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय)