अपने उत्तर प्रदेश में चमत्कारों की वर्षा

अपने उत्तर प्रदेश में चमत्कारों की वर्षा

[नोट: यह लेख मौलिक रूप से अंजली सिंह द्वारा अंग्रेज़ी में लिखा गया है, जिसको यहाँ पर क्लिक करने से पढ़ा जा सकता हैयह अनुवाद शोभा शुक्ला जी ने किया है जिसके हम आभारी हैं]

केवल एक माह के सक्षम ने किसी के मन में जरा भी संशय नहीं छोड़ा है कि वो एक चमत्कारी बालक है. सक्षम का जन्म लखनऊ की एक आवासीय कालोनी,खुर्रमनगर के पास, सड़क के किनारे हुआ था। जन्मते ही वो अपनी, मानसिक रूप से अव्यवस्थित, माँ से बिछुड़ गया था। उन दोनों को एक बार फिर से मिलाने के लिए जिस प्रकार के अथक प्रयास करने पड़े, वो किसी चमत्कार से कम नही हैं।

माँ और बेटे की अग्नि परीक्षा उस दिन से आरम्भ हुई जिस दिन सरस्वती (उसका यह नाम यूं.पी.स्टेट लीगल सर्विसेस अथोरिटी के कर्मचारियों नें रखा था) को कुछ लोग लखनऊ ले आए - उसे बेचने के लिए।

परन्तु उसने अपने को इस शहर की सड़कों पर पाया - कैसे, यह कोई नहीं जानता और यहाँ पर उसे जिस संत्रास से गुजरना पड़ा, उसने न केवल उसको मानसिक रूप से प्रभावित कर दिया, वरन उसे गर्भवती भी बना दिया। नौ महीनों तक उसका शोषण होता रहा और वो सड़कों पर, अपने अजन्मे बच्चे के साथ इधर उधर घूमती रही और फिर ४ मार्च,२००९ को उसने अपने बच्चे को सड़क के किनारे ही जन्म दिया।

खून से लिथड़े हुए उस बच्चे पर एक राहगीर की नज़र पड़ी उसने वहाँ पर इकट्ठे कुत्तों को भगाया जो शिशु पर हमला करने की ताक में जमा थे, और बच्चे को बाल गृह पहुंचा दिया क्योंकि उसकी माँ का कोई पता नहीं था, इसलिए उस बालक को अनाथ मान कर उसे गोद लेने हेतु प्रस्तुत कर दिया गया। सक्षम नामक इस शिशु की अपनी नियति से लुकाछिपी शुरू हो गयी। बालक का भाग्य उसे हर तरफ़ ले गया, पर अपनी माँ के पास नहीं।

श्री सुधीर सक्सेना ( जो यू.पी.स्टेट लीगल सर्विसेस अथॉरिटी के सदस्य सचिव हैं, और जिनका सरस्वती और सक्षम को बचाने और पुनर्वासित करने में बहुत बड़ा योगदान है) का कहना है कि, ''मैं सोचता था कि ऐसी घटनाएं केवल फिल्मों में ही घटती हैं। परन्तु इसे स्वयं अपनी आँखों के सामने होते देखना, वास्तव में आश्चर्यजनक है। यह दु:ख की बात है कि माँ और बच्चे को इतनी यातनायें झेलनी पड़ी। परन्तु जिस प्रकार सभी लोगों ने एकजुट होकर उन दोनों को मिलाने में मदद करी, उससे मुझे लगता है कि बाल अधिकारों को लेकर, इस शहर से बहुत उम्मीदें की जा सकती हैं।''

उपर्युक्त कथन से जी.श्रीदेवी (जो यू.पी.स्टेट लीगल सर्विसेस अथॉरिटी की सचिव हैं) भी सहमत हैं। स्वयं भी आंध्र प्रदेश की होने के कारण वे लोगों को, सरस्वती द्वारा बोले जानी वाली तेलुगु भाषा, समझा पाने में सफल हुईं। उनका कहना था कि, '' सभी लोग सरस्वती को पागल एवं मानसिक रूप से विक्षिप्त करार देने पर तुले हुए थे। मैं तो यह जानती थी कि उसकी यह दशा उसके साथ हुए दुर्व्यवहार के कारण हुई थी। उसने भी यही बात मुझे बतायी, जब मैंने उससे तेलुगु में पूछा कि वो लखनऊ कैसे आयी। परन्तु सरकारी आश्रय गृहों एवं निजी बाल गृहों को यह बात समझाने में बहुत प्रयत्न करने पड़े, कि वह खतरनाक या पागल नहीं है। अधिकतर ऐसे गृहों ने सरस्वती को अपनाने में असमर्थता दिखायी। किसी प्रकार एक सप्ताह के बाद हम लोग बड़ी मुश्किल से एक सरकारी आश्रय गृह को इस बात के लिए राजी कर पाये कि उसको तब तक वहाँ रहने दिया जाए,जब तक कि वो अपने पुत्र के साथ मिलकर अपने मूल निवास स्थान, आंध्र प्रदेश नहीं चली जाती। ''

पर यह इतना आसान नहीं था। उस सरकारी आश्रय गृह ने सरस्वती को दो दिनों तक रखने के बाद अपनी असमर्थता दिखाई, यह कह कर कि वो उस गृह में रहने वाली अन्य महिलाओं के लिए खतरा थी। प्रत्यक्ष दर्शियों के आश्वासनों के बावजूद, कि वो किसी को नुकसान पहुँचाने की स्थिति में नहीं थी, गृह की अधीक्षक ने उसे वहाँ रहने की अनुमति नहीं दी। कोई और उपाय न होने के कारण, सरस्वती को लखनऊ मेडिकल यूनिवर्सिटी के मनोरोग वार्ड में भरती करा कर उसका इलाज कराया गया।

यू.पी.लीगल सर्विसेस के एक और अधिकारी श्री एस.एन.तिवारी के अनुसार, ''वो किसी को नुकसान नहीं पहुँचा सकती थी। जिस वक्त हम सब उसे एक चाय की दुकान से लेकर आए (जहाँ वह अक्सर बैठा करती थी ), उस वक्त वह बहुत ही कमज़ोर और बुरी दशा में थी। पर कोई भी इस बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं था। हमने जिस भी आश्रय घर का दरवाजा खटखटाया , उन सबने यही कहा कि वो तो पगली है। यह बहुत ही दु:ख भरी स्थिति थी। वह लगातार अपने खोये हुए बच्चे के बारे में पूछ रही थी, जो उससे छीन लिया गया था। जब तक कि उसके लिए कोई बसेरा नही ढूँढा गया ,तब तक उसे अपने बच्चे से मिलवाना सरल नही था. ''

परन्तु एक महीने के बाद असंभव भी सम्भव हो गया। यह सब माँ की अपने बेटे से मिलने की इच्छा और बेटे के भाग्य की वजह से हुआ। २३ अप्रैल,२००९ को सरस्वती ने पहली बार अपने लाडले को अपनी गोद में लिया (यू.पी.एस.एल.अ। के ऑफिस में )

अब अपने मूल निवास स्थान आन्ध्र प्रदेश पहुँचने पर उसे आंध्र प्रदेश लीगल सर्विसेस अथॉरिटी को सौंप दिया जायेगा, और वो लोग उसे अपने बच्चे के साथ किसी घर में रखेंगे तथा उसके परिवार को ढूंढ कर उससे मिलवाने का प्रयास करेंगे।

परन्तु सरस्वती और सक्षम, कदाचित नवाबों की नगरी लखनऊ की इस यात्रा को कभी नहीं भूलेंगे। क्योंकि इसी यात्रा ने तो उनके जीवन को सदा के लिए बदल दिया है । यहाँ तक कि अब उन दोनों में एक दूसरे के लिए जीवित रहने की इच्छा शक्ति जाग्रत हो गयी है।

लेखक: अंजली सिंह (मौलिक रूप से अंग्रेज़ी में लिखा गया है, जिसको यहाँ पर क्लिक करने से पढ़ा जा सकता है)
अनुवाद: शोभा शुक्ला